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३. सासू काठा हे गहूँ पीसावि, आपण जास्या मालवड, सोनारि भणइ | ( पृ० ५४)
४. झीणा मारू लाल रगावउ पीया चूनड़ी । ( पृ० ६० ) ५. थे तउ अगला रा खडिया आज्यो,
रायजादा लाइज्यो राजि । ( पृ० १६१)
६. वाटका वटाऊ वीरा राजि,
वीनती म्हारी कहीयो जाइ, अरे कहीयो जाइ,
अब पके दोऊ नीवूअ पके, टपक टपक रस जाइ । ( पृ० १६१)
७ आठ टके ककणठ लीयउ री नणदी, थरकि रह्यउ मोरी वांह,
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ककणउ मोल लीयउ | ( पृ० १६३)
काव्य विवेचन का एक अंग भावसाम्य भी है। राजस्थानी कवियो की रचनाओं में इस दृष्टि से विचार करते समय कई पक्ष सामने आते है । कवि जिनहर्ष संस्कृत के विद्वान थे । अत यत्र तत्र उन्होंने संस्कृत - सुभाषितों का अपनी नीति वाणी में अनुवाद प्रस्तुत किया है
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खल सगत तजिये जसा, विद्या सोभत तोय |
पन्नग मणि संयुक्त तें, क्यू
नदी नखी नारी तथा नागणि
खग जसराज 1
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नाई नरपति, निगुण नर, आठे करें अकाज ॥३२॥
दोहा वावनी )
दुर्जनः परिहर्तव्यो
मणिना भूषित. सर्प
न भयकर होय ॥१६॥
विद्ययालंकृतो
सन् ।
किमसो न भयङ्कर ॥