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रोस करइ
[२०]
विचार सनेह, सनेह पुरातन चीत न
ज्यु
असगा, सव ही सरखा जसराज
सिंह कइ कवण सगा
आणइ ।
वखाणइ ॥
(पृष्ठ ४०१)
कवि जिनहर्ष काव्य के साथ ही संगीत के भी ज्ञाता थे और उनके द्वारा विरचित अनेक पदो में शास्त्रीय राग-रागिनी का प्रयोग हुआ है । प्रस्तुत संग्रह में उनके दो सवैये 'रागकरण समय सूचनिका' के रुप में दिए गए है ( पृ० ४०७) । इसके अतिरिक्त कवि ने अपने समय के लोक सगीत की धुनों की ओर भी पूरा ध्यान दिया है । लोक प्रचलित घुनो में किसी चीज को प्रस्तुत किए जाने से उसका अच्छा प्रचार हो सकता है क्योकि वे स्वय जनजीवन की अगभूत होती हैं । इस प्रकार अन्य अनेक जैन कवियों के समान कवि जिनहर्ष के द्वारा भो अठारहवी शती के काफी लोक गीत की आद्य पक्तियां लोक संगीत के प्रेमियों को अव्ययनार्थ मिल गई है । ऐसी आद्य पक्तियो की एक अति विस्तृत सूची 'जैन गुर्जर कविओ' भाग ३ खड २ में सग्ग्रह कर के प्रकाशित की गई है, जो द्रष्टव्य है । प्रस्तुत सग्रह के अत में कवि जिनहर्ष द्वारा प्रयुक्त 'देशियो' की सूची दी गई है, जो बडी उपयोगी है । इन देशियो पर स्वतंत्र शोध की आवश्यकता है । इनमें तत्कालीन जन समाज का हृदय स्पदित है । कुछ उदाहरण देखिए :
१ हो रे लाल सरवर पाले चीखलउ रे लाल, घोडला लपस्या जाई । ( पृ० ४२ )
२ नवी नवी नगरी मा वसई रे सोनार, कान्हनी घडावर नवसरहार ( पृ० ४४ )