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नदीनां नखिनों चैव शृ गिणा शस्त्र पाणिनाम् ।
विश्वासो नैव कर्तव्यो स्त्री राजकुलेषु च ॥ • यत्र तत्र कवि जिनहर्ष की रचनाओं में अन्य कवियों के भाव अथवा शब्दावली तक ज्यों के त्यों दृष्टिगोचर होते है
१-अठि कहा मोई राउ, नइन भरी नींद रे, काल आइ ऊभउ द्वार, तोरण ज्यं बीद रे। मोह की गहल माझि, सोयउ बहु काल रे, कछु बूझ्यु नहीं तु तउ, होइ रह्यउ बाल है।
(पृ० ३५१) सोवू रै सोवू वन्दा के करे, सोयां आवे रे नींद, मोत सिरहाणे बन्दा यू खडी, तोरण बायो ज्यू वीद, वोलि म्हारा भवरा तू काई भरम्यो रे।
(काजी महमद ) २-दस दुवार को पीजरो तामै पंछी पनि । रहण अचूवो है जसा, जाण अचूवो कौन ॥४॥ जो हम ऐमे जानते, प्रोति वीचि दुख होइ । सही ढढेरो फेरते, प्रीत करो मत कोड ॥८॥
(पृ० ४१६) नो द्वारे का पीजरा, तामें पछी पोन । रहने-को आचरज - है, गए अत्रम्भो कोन ।।
(कवीर)