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फलौधी पार्श्वनाथ स्तवन पास तणां गुण कहतां परगट, गंज न सकै अरियण गज थट घणो घणा थायें नित गहगट, कदही चाव न चूके कुलवट ॥२॥ आससेन नंदण अतुली वल, निलवट जिग-मिग नूर निरंमल अवतरियो कलि सुरतर अविचल, पोस दसम महिमाले परग्घल ॥३॥ गीत गुणे जिनवर गाइजै, परम प्रवीत प्रमोद पाइजे। लय जगनायक सुं लाइज, थिए जस वास सुथिर थाइजे ॥ ४ ॥ जिनवर तणा जिके गुण जपसी, खिण खिण तासु विकट क्रम खपसी। तेज दिवाकर जिम जग तपसी, क्रम क्रम राग दोपबंध कपसी॥५॥ प्रणमंता मन बछित पावै, पूज करंता वंछित पावै प्रभु प्रसाद वंछित फल पावे, प्रसन थीयां महीयल जस गावे ॥६॥
दोहापावै प्रणमन्तां प्रघल, रिद्धि सिद्धि नव निधि राज परमेसर फलवद्धिपुर, लाख वधारण लाज ।। ७ ॥
मोती दाम छंद । वधारण लाज बड़ो वरीयाम, सदा सुप्रसन्न मिलतो साम । वखाणां कीरति देस विदेस, नमो फलवद्धीय नाथ नरेस ॥८॥ कलजुग मानव कोड़ाकोडि, जपं जगदीसर वे कर जोड़ि । पेलंतर पाव करै न प्रवेस, नमो फलवद्धीय नाथ नरेस ॥ ८ ॥ धरा उर जे नर ध्यान धरन्त, तिकै भवसायर वेग तिरन्त । नवेनिध मिदर तासु निवेस, नमो फलवद्धीयनाथ नरेस ॥१०॥ भलौ अससेण तणे कुल भांण, वामा उर कन्दर सींह वखाण । सदा पग आगलि लौटे सेस, नमो फलवद्धीय नाथ नरेस।।१।।