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श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली श्री पार्श्वनाथ स्तवन
ढाल | लाखा फूलाणीनी ॥ परम सनेही पास, बीनती सुणीजइ साहिब माहरी । आव्यउ हुं तुझ पास, निरमल कीरति सांभलि ताहरी ॥१॥ तं सुरतरु साख्यात, वंछित पूरइ भव भव केरड़ा। तुं तउ गृहीर गंभीर, सायर जिम वीजा सुर वेरड़ा ॥२॥ पार न लहीयइ जास, गुण नउ तेहवा नरनी संगति भली । भार समइ भुई जेम, तेहसुं निवहई प्रीतड़ली सोहली ॥३॥ जिम तिम कहतॉ वोल, चिड़तां पिणि वाल्हा चिरचइ नही । आदर देई अमोल, आप कन्हइ राखइं हाथे ग्रही जी ||४|| निगुणा सेवक होइ, छह न दाखइ गरुआ तेहनइ। . वनचर पशु मृग जोइ, चरणे राखी रह्यउ निसिपति जेहनइ ॥५॥ मोटा ते कहवाय, जउ मोटिम मेल्हइ नही आपणी । आवउ नाघउ हाय, पिणि सुनजर राखइ सेवक भणी ॥६॥ जेहनइ महडइ लाज, ते निज मुख नाकारउ नवि कहइ । आवइ सहु नइ काजि, तेहनी संपति जिम नदीयां जल वहइ ॥७॥ आससेण राय मल्हार, वामानंदन जग सोह वधारणउ । नील वरण निकलंक, नाग लंछण महिमा प्रभु नउ घणउ ॥८॥ तुं सहु वाते जाण, तुझ नइ स्युं कहीयइ वयण घj घणा । तूं जिनहरख प्रमाण, पूरि मनोरथ निज सेवक तणा ॥६॥