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पार्श्वनाथ स्तवन
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खिणि २ ता हो सुपन सांभरइजी, मुझनइ श्री महाराज || ६अ० ॥ माहरड़ चाल्हेसर प्रीतम तुं धणीजी, तुंहीज प्राण आधार । हरख घणड़ जिनहरख संभारिज्यो जी, मत मूं कउ वीसारि ॥ ७अ० ॥ श्री पार्श्वनाथ स्तवन
ढाल || सहीया सुलताण लाडउ ग्रावइलउ एहनी मनरा मानीता साहिब पास जिणंदा, अरज सुणीजड़ त्रिभुवन चंदाही चरण न छोडुं निशिदिन तोरा, पूरि मनोरथ साहिब मोरा हो || १ || तुझ मिलिवा मुझ मन ऊमाहइ, सेवा करेवा चितड़उ चाह हो । प्रीतडी तोसुं लागी सनेही, तर अंतर राखीजइ केही हो || २ || जउ मुझसुं प्रभु प्रेम न धरिस्यउ, अंतरजामी महिर न करिस्यउ हो तर मुझ न कुण वांहे ग्रहिस्य,
मुझ अवगुण लीइ कुण वहिस्या हो ॥ ३० ॥ आसंगाइत सेवक होस्यइ, ते निज साहिव नउ दिल जोस्य हो । दिल जोई नई बात कहे स्यइ, तर तेहनो मरज्यादा रहे यह हो । ४म० । साची सेवा प्रभुजी रीझर, हलुअइ हलुअइ कारज सीझइ हो । अति उच्छक ते काम विगाड़इ,
fins लोकां माहि दिखाइ हो ||५० || साहिब सुं रहिस्यइ लय लाई, करिस्यइ वीजी बात न काई हो । तर हितसुं तेहनइ बतलाई, देस्यइ वछित मउज सदाई हो || ६ || मोटां आगलि घणुं न कहीयह, करजोड़ी नइ चुप करी रही यह हो । पोतानइ मेलइं दुख कापर, प्रभु जिनहरख परम सुख आपइ हो । ७म०