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श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली
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बहुल संसारी बापड़ा रे लाल, न लहइ तेह विचार मो ८ सु ॥ तूं चिन्तामणि सारिखो रे लाल, बीजा काच कथीर । मो० । बीजा सुर पथ आकना रे लाल, तुं निरमल गोखीर | मो ६ ॥ तुझ सेवा थी पामीयइ रे लाल, नरसुर शिव सुख सार | मो। बीजा सुरथी पामीयइ रे लाल, नरग निगोद अपार । मो १० सु ।। अश्वसेन नरपति कुल तिलउ रे लाल, वामोदर सर हंस । मो० । प्रभु जिनहरख सदा जयउ रे लाल, तीन भुवन अवतंस || मो० ११सु ।। श्री पार्श्वनाथ स्तवन
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ढाल || चमर ढलावइ गजसिंघ रउ छावर महल मा जी || एहनी सुगुण सनेही साहिव सांभलि वीनतीजी, पर उपगारी पास | परतखि हुइन हो परता पूरवउ जी, सफल करउ अरदास || १ || अरज सुणीजइ मन मोहन साहिव माहरीजी, आनंद अधिकउ होइ । सूरति देख हो हरखु हीयड़लइजी, जगगुरु साम्हउं जोइ || २ || धरणी निहाली हो सगली पवन ज्यूं जो, जग सहु मूं क्यउ जोइ । जिणिनह निहाल्यां हो साहिब वीसरड़, तिसउ न मिलीयउ कोइ || ३अ एक पत्रीणी हो प्रीति मतां करउ जी, गरुआ गुणे गंभीर । माहरउ तउ मनड़उ हो न रहइ तुझ बिना जी,
जिम मछली विणि नीर ॥ ४ अरज० ॥
मउज कढ़े किणि दीजह मुझ भणीजी, ब्रेवीसम जिनराय । आसड़ी विधा हो इम ही रिप तजउ जी, वातडीयां वउलाय ॥५॥ अहनिसि ताहरउ हो ध्यान हीयइ वसह जी, जिम रेवा गजराज ।