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________________ पाश्र्वनाथ स्तवन २४६ . सीस तुम्हारी आणा मइधरी, हो० सा० . .. तुंहीज भवो भव माहरइ सिर धणी रे हां जी ॥२॥ __ साचउ हुँ खिजमतगारी रावलउ, हो० सा० । ' चरणा री नइ सेवा दीजइ दास नइ रे ॥ हीयड़उ हेजाल मन ऊताक्लु रे हां जी, हो० सा० । सेवा नइ करेवा मिजपूर वासि नइ रे हां जी ॥३॥ मोह विलूधउ अग्यानी पणइ हो. सा० । मिथ्याती सुर केइ मई सेव्या हुसी रे हां जी ॥ पार न कोई माहरे अवगुणे, हो० सा० । सोम नजर सुं जोवउ मनड़उ हुइ खुसी रे हां जी ॥४॥ ताहरइ तउ सेवक सहु को सारिखा, हो० सा० । अधिका नइ वली ओछा प्रभु नइ को नथी रे हां जी ।। एक नजरि नवि जोवइ पारिखा, हो० सा० । ते जिनहरख जाणीजइ आप सवारथी रे हां जी ॥५॥ श्री पार्श्वनाथ स्तवनं ढाल || थारी महिमा घणी रे मडोवरा || एहनी 'म्हारउ मनड़उ मोबउ पासजी, थाहरी सुनिजर मूरति देखि हो लोयण सुरतिमइ चुभि रह्या, जिम कंचण कसवट रेख हो । १ । हुँ साहिवरी सेवा करूँ, निसिदिन ऊमाहउ एह हो सेवा दीजइ प्रभु करि मया, हुं तुझ चरणा री रेह हो । २ ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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