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________________ २४८ पार्श्वनाथ स्तवन ढाल || भाइती रागे '' 2 भगवंत, भजड सगला भ्रम भाजइ, अवरतणी सिर-म धरउ आण । हेक धणी तउ परतखि हुइस्यड़, कोड़ि गमे तर लहिसि कल्याण | ११ नागर करुणासागर निति प्रति भाव सेव करह चित मेलि । सो साहिव तजि पाचं सरीखंड, मिणियां काचम राखउ मेल |२| तवंड नही कोई त्रिभुवन तारक, जनम मरण भंजण जंजीर । सुप्रसन थियउ दीयई सुख सगला, तुरंत पमांड़े भव जल तीर | ३ | वामानंदण करमविहंडण, पाय नमै नर अमर भूपाल । इरी 'कोई न वरावर आवै, बीजा देव बापड़ा वाल ॥ ४ ॥ जगगुरु तुझ भ्रामण जाऊ, अतुलीबल तुं हीज अरिहंतं । भव भव 'मुझ हुज्यो पाय भेटा, कर जोड़े जिनहरख कहंत | ५| 77 श्री जिनहर्ष प्रन्थावली T इ F पार्श्वनाथ लघु स्तवन - दाल ॥ पनिया मारु नी 7 आज सफल दिन माहरेउ, हो साहिना म्हांरा । 'आंखड़ीया निहाल्यां जिनवर पासजी रे हां जी ॥ दरसण दीड साहिबा ताहरउ, हो साहिबा म्हांरा । कुमति महेली हिंवई दूर तजी रे हांजी ॥१॥ आंव्यउ हुं आशा करि- नइ ताहरी, हो साहिबा म्हांरा || आसड़ीयां पूरीजह निज सेवक तणी रे हां जी ॥ t
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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