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श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली करुणासायर करुणा करउ, चाहंता घउ दीदार हो, पाणीथी स्यूंछ पातलउ, इवड़ा जे करउ विचार हो। ३ माहरा मन थी मेल्हुँ नहीं, अलवेसर ताहरी आस हो, निति नाम जपिसि हूँ ताहरउ, जा पंजर माहे सास हो। ४ वाल्हेसर विरचीजइ नहीं, माहरा अवगुण अवलोइ हो, मोटा पिणि जउ विरचइ कदी, तउ तउ ऊथलवा होइ । ५ । ओछानी प्रीति एरंड ज्यु, फुलतां न लगावइ वार हो, सुगणां री अविहड प्रीतड़ी, आतउ बड़ जेहइ विस्तार हो । ६ वीजउ क्युं ही मागू नहीं, मुझ आवागमण निवारि हो, जिनहरख तणो ए वीनती, वामानंदन अवधारि हो । ७।
श्री पार्श्वनाथ स्तवन
ढाल ।। फागनी ॥ सकल मंगल सुख संपदा हो, घउ मोहि दीनदयाल, तं जग सुरतरु सारिखउ हो, सेवक जन प्रतिपाल । १ । मनमोहन मरति पासजी हो, अहो मेरे जिनजी, अरज सुणउ चितलाय । म० । अहो मेरे प्रभुजी, तुम तइ मेरे दुखजाइ । म० । ऑ०। मुझ मन तुझ चरणे रमइ हो, ज्यों मधुकर अरविंद । पलक रहइ नहीं वेगल हो, निसदिन अधिक आणंद रामक प्रभु मुख राकापति वण्यउ हो, मुझ भये नयन चकोर देखि घटा द्युति देह की हो, नाचत हइ मन मोर । ३ ।म०।