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श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली दीप सिखा जाणे नासिका, दसन मोती नी माल । अधर प्रवाली ओपीया, अरध निसाकर भाल ॥४ मु० ॥ . रूप वण्यउ प्रभुनउ रूअड़उ, ओपम दीधी न जाइ । चउसठि इंद्र सेवा करइ, पूजइ प्रभुजी ना पाय ॥ ५ मु०॥ अश्वसेन नृप कुल दीवलउ, वामाराणी नउ नंद । नील वरण तउ सोहतउ, परतखि सुरतरु कंद ।। ६ मु० ॥ . धरणिन्दै नइ पद्मावती, सेवई चित्त लगाइ। कर जिनहरख जोड़ी करी, हरख धरी गुण गाइ ॥ ७ मु० ॥
पार्श्वनाथ स्तवन .. -ढाल | म्हारइ अागणीयइ-हे श्रावउ सहीया, मउरीयच ॥ एहनी म्हारा साहिबा सुणि मोरी वीनती, जगनायक प्रभु पास जिणंद। दरसण दीजइ मुझने हिवइ, जिम थायइ ए तउ परमाणंद । १ । थाहरा मुखड़ा ऊपरिवारी साहिवा, थाहरउ मुखड जाणे पूनिचंद। आशा करि आन्यउ तुम कन्हइ, उपगारी म्हारी पूरउ आस ॥ सापुरुषा नी ए रीति छड्, नचि {कइ निज दास निरास ।२। उपगार करण पर कारणइं, सापुरुपे. एतउ धयु शरीर। दूहव्या पिणि छेह न दाखवइ, जे गुरुआ गुण जलधि गंभीर ।३। तुमसु रहीयइ छइ वेगला, स्युं करीयइ कोइक अंतराय । आवी न सकून मिली सकुं, एतउ दुखड़उ मइ खम्यउ न जाय ।४। साहिब ने सेवक छइ घणा. सेवा सारइ निति कर जोड़ि। सहु ऊपरि सुनजरि सारिखी, राखइ तूं मन कसमल छोड़िश