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________________ safirt 7 AR", पार्श्वनाथ स्तवन अही मेरे जिनजी बामादे रानी केरउ नंद | ज० अ० । नील कमल दल कोमल काया, अनुपम सोहई रूप ।। देखत ही तनमन सुख पावर, हीयडलइ हरख 'अनूप ॥२ जा पुरुषादाणी गुणमणि खांणी, 'राणी प्रभावती कंत । निज आतम हित जाणी सेवउ प्राणी, मन निरमल करि एकत | ३| 71 1 चंछित पूरंइ दुकृत 'चरह, कलियुग सुरतरु एह । 1 ܐ ݂ܟ 7 २४५ 79 सेवक नइ सुखदायक नायक, तीन भुवन गुण गेह ॥ ४ ज ।। - पत मोहणगारउ सहुनई प्यारउं, धारउ हीयडा मांहि | तारउ आतम आपणउ हो, वारउ भव भ्रमण अगाहि ॥ ५ जी॥ | ए साहिब नी सेवा कीजइ, लीजइ नरभव लाह । पूजीजइ प्रभु नइ चिंत चोखइ, होइजइ तउ शिवनाह ॥ ६ ॥ पुन्य पसाय पामीया हो, देव तणउ "ए 'देव 7 कहइ जिनहरख न मेल्हीयई 'हो, एहनी चरण नी सेव ॥ ७ पार्श्वनाथ स्तवन 50102 57 ढाल || जाटणी ना गीतनी 7 - मुखड दीठु हो ताहरु पासजी, जाणे पुनिमचन्द नयण चकोर तणी परड़, पामई परम आनन्द ॥ १ मु० 7 मनमोहन महिमांनिलड, सोभागी सिरताज । " प्रभुजी मूरति जोवतां, सीजइ सगला काज ॥ २ मुं० ॥ 'नयण कमल दल सारिखा, अणीयाला अति चंग. | सुरनर देखी मोही रहह, 'जिम पंकज' स्युं भृंग || ३ मु० ॥ Kuta o "F ܐ ܐ
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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