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श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली
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केसर चन्दन कुमकुम " रे लो, मैली मांहि कपूर रे भ० प० |१| कुसुममाल कंठ ठवउ रे लो, गावउ गण सुविसाल रे भ० । जनम सफल इम कीजीयड़ रे लो, लहीयड़ सुक्ख रसाल रे भ० |२| चरणकमल थी वेगला रे लो, रहीयड़ नही एकत रे ० नयणां आगलि राखीये रे लो, ए साहिब गणवंत रे ॥ भ०३ || सूता वइठां जागतां रे लो, धरीय हीयड़ड़ ध्यान रे भ० । एहनउ संग न छोड़िया - रे लो, आपइबंछित दान रे भ० ॥ ४ ॥ एहस्यु एक तारी करी रे लो, रही यह एहन पासि रे भ० । मउड़ी बड़गी तउ सही रे लो, आखर पूरइ आस रे भ० ||५|| मोटाइ नवि मूंकीयइ रे लो, मोटा खोटा न होइ रे भ० मुख मीठा झूठा हीयइ रे लो, दूरइ तजीयइ सोइ रे भ० ||६|| साहिब नह ज सेवी रे लो, तर करह आप समान रे भ० । नीच निखरनी चाकरी रै लो, लहीयइ पिणि नही मान रे भ० /७॥ अश्वसेन वामा कुलतिलउ रे लो, परतखि पास जिणंद रे भ० । ए साहिब उ थंकर रेलो, छह जिनहरख आणंद रे भ० ||८|| पार्श्वनाथ - स्तवन' -
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ढाल - ॥ फागनी
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पास जिणेसर तूं परमेश्वर, त्रिभुवन तारणहार ।
चउठि इंद्र कर पाय सेवा, सुर नर खिजमतगार ||१|| जिन त्रेवीसम हो अहो मेरे ललना अश्वसेन नृप-कुल- चन्द ॥ ज ॥
जगजीवन
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