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________________ पार्श्वनाथ स्तवन पार्श्वनाथ स्तवन ..., ढाल | महिंदी नी, वामानन्दन वीनं५ रे, घउ, दरसण महाराज । मूरति. मन मोघउ, थांरी . सूरतड़ी सिरदार ।।।। म्हारा आतमरु, ओधार मू० : दरसण दीठां मन ठरइ रे, सीझइ वंछित काज ॥१॥ . मूरति ताहरी मन गमइ रे, मुरति सुं बहु-प्रेम । मू० ।निसिदिन हीयड़ा मां वसइ रे, लोभी नइ धन जेम ॥२ मू०॥ सुगुण सनेही साहिवा रे, तूं तउ मोहणवेलि । सू०.। , जायइ नही वीजा कन्हइ रे, मुझ मन तुझ नइ मेल्हि ॥३मूना मन मइं जाणुं ताहरी रे, भगति करूं कर जोड़ि । मू०।आठ पहुर ऊभउ थकउ रे, आलस अलगउ छोड़ि ॥४-मू० ॥ पिणि कोइक अन्तराय छइ रे, करि न सकुं तुझ सेव । मू० । तुं तउ ही सेवक जाणिनइ रे, देज्यो सुख नितिमेव ॥५ म० दीठां देव गमइ नही रे, भरीया जेह कलंक । मू०। .. -- साहिव तुझ मिलियां पछइ रे, आडउ वलीयउ अंक ॥६ मू०॥ ,धरणिंद नइ पदमावती रे, पास रहइ तुझ पासि । मू० । __ कहइ जिनहरख सहू तजी रे, ताहरी राखं आस ॥७ मू०॥ पार्श्वनाथ स्तवन ढाल कोइलउ परवत धूधलउ रे लो | एहनी परम पुरुष प्रभु पूजीयइ रे लो, भाव धरी भरपूर रे । भविक नर
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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