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________________ २४२ श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली ~~7 लाडकोड मांवीत, जो नवि पूरइ हो सुगुणा साहिब प्रेमसुंरे । तर कुण राखड़ प्रीति, तर कुण पालइ हो सुगुणा साहिब प्रेम सुं रे । पास जिणेसर राजि, पदवी आप हो सुगुणा साहिब ताहरी रे | प्रभु जिनहरख निवाजि, अरज मानेज्यो हो सुगुणा साहिब माहरीरे पार्श्वनाथ लघु स्तवन 4 12 ढाल || ये तउ अलगा रा खड़ीया आज्यो रायजादा सहेली हो । सहेली ल्याइज्यो राजि ॥ एहनी थांन वीनती करांछां राजि, गुणवंता f · लाइल्युं हो बलाइल्युं मानिज्यो राजि । म्हांरा सफल करेज्यो काज | गु । थाहरा चरणकमलनी सेव ! म्हांन देज्यो देवांरा देव ॥१॥ T म्हे तर मेल् सहु जग जोड़ | गु। थां सरिखड अवर न कोई । उपगारी जे नर होइ |गु मोटा जग माहे सोइ ॥ २ गु०॥ 1 १" हरे चरणे रहे लयलीन गु । जिम जीवन सुं मन मीन । ܐ म्हांग मनकेरी पूरउ आस । गु कर जोड़ी करू अरदास |३| मोटा साहिब जें' जाण ।गु । ते तउ राखड़ नही माण | सेवक ते आप समान ग| करि राखड़ देड़ मान ॥४ गुं० ॥ 'थाहरइ सेवक छई लेख कोडि | गु। थांहरी सेवा करइ कर जोड़ि | सेवा सरिखउ उ छ दान । गु । श्री पास म्हांना पिण मानि ५ थोड़ा मइ घणो जाज्यों | गु | म्हार का चित्तम आणेज्यो । बीजउ म्हांनइ क्युं न सुहाव | गु| जिनहरख परमपद पावइ ||६| 44
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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