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________________ , २४१ . 11 पार्श्वनाथ स्तवन ताहरउ ध्यान हीयइ धरु रे म० निरमल मोती हार हो । ज । मुझ मन लागी मोहणी रे म० न रहुं दूरि लिगार हो । ५ ज। देस्यउ मउजे मया करी रे म० तर जग रहिस्यइ लाज हो जी नहीं घउ तउही आडट करी रे म० लेइसि हूँ महाराज हो ।६ज। दीठा दुनीया माहि मइ रे म० वीजा देव अनेक हो । ज । __ तुझ सरिखउ कोइ नहीं रे म० जोयउ धरिय विवेक हो । ७ जा अरज सुणि ए माहरी रे म० वामानंद विख्यात हो। जी . कहइ जिनहरख निवाजिज्यो रे म० सउबांते एक बात हो।८ ज। पार्श्वनाथ स्तवन ढाल || सुबरदे ना गीतनी " सुन्दर रूप अनूप, मूरति सोहइ हो सुगुणा साहिब ताहरी रे। चित माहे रहइ चूप, देखण तुझने हो सुगुणा साहिब माहरी रे॥ मुझ मन चंचल एह, राखु तुझमइ हो सुगुणा साहिब नवि रहइ रे। मुझसुं धरिय सनेह, राखउ चरणे हो सुगुणा साहिव सुख लहइ रे॥ तूं उपगारी एक, त्रिभुवन माहे हो, सुगुणा साहिब मइला रे। आव्यउ धरिय विवेक, हिवइ तुझसरणउ हो सुगुणा साहिब संग्रहउ रे।। सरणागत साधारि, विरुद संभारी हो सुगुणा साहिब आपणउ रे। भवेसायर थी तारि, तुझनइ कहीयइ हो सुगुणा साहिवस्यं घणउ रे॥ साहिवनइ छइ लाज, निज सेवक नी हो सुगुणा साहिब जाणिज्योरे। मेलउ दे महाराज, वचन हीयामई सुगुणा साहिब आणज्यो रे ॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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