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श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली साहिब नइ सहु कोनी चिन्ता, गुणे अनंता,
राखइ रिती न रेहा लो ।। ६ म्हां ।। बारंबार कहता स्वामी, आवइ खामी,
__ अमनइ पास जिणंदा लो ।। भूख्यउ मांगइ मांनइ पासइ, मुख्य विकासइ,
घउ जिनहरख आणंदा लो ॥ ७ म्हां ।।
पार्श्वनाथ स्तवन
ढाल ॥ दादर दीपतउ दीवाण ॥ एहनी माहरी करणी सुगति हरणी, कहुं तुझ भगवंत रे। दुख भांजि भव भव ना-दया करि, मुगति रमणी कंति ॥१॥ जिनवर चीनती अवधारि, मुझ नइ भव थकी निस्तारि । जि०। दोहिलउ लाधउ मानुषउ भव, देस आरज पामि रे । .. मइं हारीयउ परमाद नइ वसि, जेम जूअइ दाम ॥ २ जि० ॥ मद मान कादम माहि खुतउ, मोह पडीयउ पास रे। . पररमणि रस वसि थयउ रसीयउ, किसी सुखनीआस ॥३जि० बहुं कपट माया केलची मइ, कीयउ लोभ अनत रे । धमधम्यउ क्रोध तणइ वसइ हूं, किम लहुं भव अंत ॥ ४ जि०॥ अति घणउ आलस अंग आण्यउ, मइ धरमनी वार रे । चली पाप करिखा थयउ उद्यत, भम्यु तिणि संसार ॥५ जि०॥ वहु ग्रंथ पढ़ि पढ़ि क्रिया करि करि, रीझच्या नर जाण रे। पिणि माहिलउ मुझ मन न भीनउ, चकमकी पारखाण ६ जि०॥