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________________ पार्श्वनाथ स्तवन २३६ निज करम हणिया तप न कीधर, तप कीयउ जस काज रे। परभव तणी कांई गरज न सरी, जिम सरद री गाज ॥७ जि०॥ व्रत लेइ भागा दोष लागा, जीव न रबउ ठाम रे । निज दोष कहता लाज मरीयइ, रहइ तुझ थी.माम ||८ जि०॥ वाद्य किरिया कठिण कीधो, ग्राउ बग जिम मूंन रे । नवि कियउ साचउ चित्त चोखइ, खमि त्रिजगपति खून ॥६ जि०॥ माहरी करणी निपट निखरि, रुलिसि. हूँ संसार रे । पिणि पास जिन मन माहि माहरइ, छइ सवल आधार ॥१०जिला जनम दुरगति मरणना दुख, सह्या मइ किम जाइ रे । जिनहरख राजि निवाजि मुझनइ, मइ ग्रह्मा हिवइ पाय ॥११जि० पाश्वनाथ स्तवन ढाल || वीछीया नी भयभंजण श्रीभगवंतजी, मनथी रहिज्यो मत दूरि हो। निशिदिन संभारु तुझ भणी, जिम चकवी चाहइ सूर रे ।१। ताहरड् सेवक छड् अतिघणा, ताहरी राखइ मन आसरे। . मुजनइ ते मांहि संभारीज्यो, हुँ पिणि छु ताहरउ दास रे ।२। तुझ चरण हूँ आवी राउ, मुझनइ तारउ महाराज रे। . जउ सोम नजरि करि जोइस्यउ, तउ रहिस्यइ तुझ मुझ लाज रे।३। वाल्हा साजन विरचइ नही, अवगुण सेवक ना देखि रे । रवि मेल्हइ नहीं पंगु सारथी, जोवउ राखइ प्रीति विशेष रे ।४।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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