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२३६ श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली देव घणा ही सेवीया, पूगी नही. काइ आस । मो०.। हिवइ तुझ पासइ आवीयउ, सफल करउ अरदास । मो० ३। थे उपगारी सिरजीया, करिवा जग उपगार । मो० । किस विमासी नइ रह्या, वाल्हेसर इणि वार । मो०४। गुण पाम्यां रउ गारवु; कीजइ नही करतार । मो० । गुण तउ तउहीज विस्तरइ, जउ कीजइ उपगार । मो० ५ ॥ जे जस लेवा जागिया, ते न करह नाकार। मो०।, मांग्यां महुँ मइलट करइ, ते कहा दातार । मो० ६॥ मुझ सारीखउ मंगतउ, तुझ सरिख दातार । मो० । कोइ नही छह एहवउ, जोज्यो रिदय विचार । मो० ७॥ मेहां नइ मोटां नरां, सहु को राखइ आस । मो० । आशा जर पूरउ नहीं, तर किम लहइ सावास । मो० ८। सुख घइ सहु सेव्यां थकां, चिन्तामणि पापाण । मो० । साहिब घइ निज साहिबी, तिणिमई किसउ वखाण मो०६॥ वामानन्दन वोनg, : जगजीवन , जगदीस । मो० । सेवक सूं सुनजर करर, घर जिनहरख जगीस । मो० १० ॥
पाश्वनाथ स्तवन
ढाल ॥ बाजई बइठी साद कर छु ॥ एहनी . . अंतरजामी साहिब मोरा, करूं निहोरों, वंछित आलउ क्यूंनइ लो। म्हारा बाल्हेसरजी रे लो॥ ..