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________________ पार्श्वनाथ स्तवन २३५ कृपण थई नइ लाल वैसी जौ रहिस्यौ, तो जगि माहे सोभा किणपरि लहिस्यौ लाल ।४ पा०। मनरा रे मोटा लाल थईयइ तो वारू, - सहु माहे जस लहिये करतव्य सारू लाल ५ पा०॥ एहवा निसनेही लाल निपट न होईजइ, . तमनै सहु सेवक सरिखा जाण्या जोईजै लाल । नयण सलणे लाल सनमुख जोवो, . मगज न राखो मनमें सुप्रसन होवो लाल ६ पा० अससेण नृप कुल केरव चन्दा, वामां राणी ना नंदा आपौ आणंदा लाल । तूं जगनायक लाल, तूं जिनचन्दा, . कहै जिनहर्ष तुम्हारा हूँ बन्दा लाल ७ पा० । ॥ इति श्री पार्श्व लघु स्तवन । पार्श्वनाथ स्तवन ढाल ।। मोकली भाभी मोनइ सासरइ || 'साहिबाजी हो सुगुणा सनेही पास जी । म्हारा आतमरा आधार, म्हारा साहिवाजी हो ॥ सुगुणा ॥ साहिवाजी हो भवसायर वीहामण, तारक पार तारि मो०११ चरण कमल रस लोभीयउ, मो मन भमर सुजाण । मो० । राति दिवस लागउ रहइ, किणरी न करइ काण । मो० २।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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