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श्री जिनहर्ष प्रन्थावली
श्री पार्श्व लघु स्तवन
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ढाल-थे सौदागर लाल चलण न देस्य
वयण अम्हारौ लाल हीयड़ धरीजै,
सेवक ऊपरि साहिव महिर करीजै लाल ।
पास जिणेसर लाल अरज सुणीजै,
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अरज सुणीजै, अंतर खोलि मिलीजै लाल । पास जिणेसर वाल्हा - अ०
तुझ विण कोइ लाल, अवरन घ्यावं,
तुझ विण अवरन हीयड़े रहाउ लाल || १ पा०|| परतिख तूं तौ लाल कांमणगारौ,
तनमन हेरी लीधुं तं तौ अम्हारो लाल ।
अन्न न भावै लोल, पाणी न भावै,
दीठां पाखै रे वाल्हा नींद न आवै लाल | २ पा०| मैं तो तम साथै लाल प्रीत वणार,
प्रीति वणाई तिण में खोटि न काई लाल ।
राति दिवस लाल तुझ नै चीतारू,
सूतां सुपनां में वाल्हा अधिक संभारू लाल | ३ पा०| हूं तौ राखूं छं लाल आस तम्हारी,
आस पूरविज्यौ थे छौ पर उपगारी लाल ।
जे गिरुआ ते तो छेह न दाखें,
पोता ना जांणी सहुकोना मन राखे ।