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________________ पार्श्वनाथ स्तवन मधुकर जिम लोभाणौ मालती हौ, आवै लैण सुवास । ऊडायो पिण ऊडै नही हो, तिम मुं मन तुझ पास ॥ ५० ॥ अवर सुरासुर दीठा देवले हो, मनमें न माने कोई । पातुर नर अमृत छोड़िनइ हो, न पीये खारो रे तोड़ ||६स० ॥ जरा उतारी जिम तई जादवां हो, राखी सगलां री लाज । तिम जिनहरख निवाजो मुझ भणी हो, राखो चरणे महाराज || ॥ इति श्री पार्श्वनाथ स्तवनं ॥ 4 पार्श्वनाथ स्तवन २३३ 2 राग-खभाइती ढाल || सोहला री* उछरंग सदा आज हुआ आणंदा, मनरा वंछित सहु मिलिया । दुख मेटण जौ भेट्यो दादौ, टेवे जिम पातक टलियां ॥१॥ भागी भीड़ अनेक भवांची, करम तणी थित न रही काय । पातक छोड़ गया सहु परहा, जपतां त्रिचीसम जिनराय ||२| मन बीजो कोइ देव न माने, चितमे कोय न आवै चीत । लोही लाख तणी परि लागी, पुरसादाणी सूं सो प्रीत | ३ | आससेण नंदन अतुलीवल, सगले ही देसे परसिद्ध । भगतवछल जिनहरपं भवोभव, कर जोड़ी सो सरणे की | ४ | ॥ इति स्तवनं पं० दयासिंघ लिखितं ॥ |
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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