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पार्श्वनाथ स्तवन
मधुकर जिम लोभाणौ मालती हौ, आवै लैण सुवास । ऊडायो पिण ऊडै नही हो, तिम मुं मन तुझ पास ॥ ५० ॥ अवर सुरासुर दीठा देवले हो, मनमें न माने कोई ।
पातुर नर अमृत छोड़िनइ हो, न पीये खारो रे तोड़ ||६स० ॥ जरा उतारी जिम तई जादवां हो, राखी सगलां री लाज । तिम जिनहरख निवाजो मुझ भणी हो, राखो चरणे महाराज ||
॥ इति श्री पार्श्वनाथ स्तवनं ॥
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पार्श्वनाथ स्तवन
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राग-खभाइती
ढाल || सोहला री*
उछरंग सदा आज हुआ आणंदा, मनरा वंछित सहु मिलिया । दुख मेटण जौ भेट्यो दादौ, टेवे जिम पातक टलियां ॥१॥ भागी भीड़ अनेक भवांची, करम तणी थित न रही काय । पातक छोड़ गया सहु परहा, जपतां त्रिचीसम जिनराय ||२| मन बीजो कोइ देव न माने, चितमे कोय न आवै चीत । लोही लाख तणी परि लागी, पुरसादाणी सूं सो प्रीत | ३ | आससेण नंदन अतुलीवल, सगले ही देसे परसिद्ध । भगतवछल जिनहरपं भवोभव, कर जोड़ी सो सरणे की | ४ | ॥ इति स्तवनं पं० दयासिंघ लिखितं ॥
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