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पार्श्वनाथ स्तवन
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सिद्ध' स्वरूप न रूप लखड़ कोई, सो साहिव संभारीयइ ॥ ३ ॥ सकल समृद्धि रिद्धि कर दाता, ताकउ जस विस्तारीयड़ । तउ छिनक मह ताकी सांनिधि, आवागमण निवारीय || ४ || अलवेसर परमेसर चित थई, दास कबहूं न वीसारीयइ । प्रभु जिनहरख हरख धरि मो परि, वामानंद वधारीयइ ||५||
पार्श्वनाथ स्तवन
राग ॥ वसन्त ॥
श्रीपासकुमर खेलइ वसंत, सखीयन टोरी मिलि मिलि हसंत । काइ सखी बजावर मृदंग रंग, कांड़ ताल कंसाल बजावर चंग |१ चोवा चन्दन पाके तेल, नामड़ सिर ऊपरि माचड़ खेल । कनक सिंगी भरि कूंकूं नीर, परभावती छांटड़ पीउ शरीर |२| अपणी राणी सू आणी रीस, तेल सुगन्ध लेई नामइ सीस | लाल गुलाब सूं लेपइ गात, अंसुक फूले केस दिखात || ३ || गंगाजल में प्रभु कर केलि, राणी प्रभावती सखी सुमेलिं । जल क्रीड़ा त्रीड़ा करइ छोरि, भरिवाथ नाथ नांखड़ बहोरि | ४ | रामति करि आए वामानंद, सब कुं उपजाए मन आनंद । केसर मह सब गरकाव होइ, जिनहरख वामा लहइ हरख जोड़ || ५ | पार्श्वनाथ स्तवन
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ढाल || मोरी दमरी अपूठी त्याज्योजी, मोरी द० एहनी || राग बिहागड़उ ॥
मोरी वीनती एक अवधारउ जी, मो० अन्तरजामी तूं अलवेसर । इतनी बात कहुँ प्रभु तोस, मोकूं भवदुख सायर तारउ जी । मो
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