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पार्श्वनाथ स्तवन । २२३ उठो पूत भोर भयो, कछु भोयणा ॥१॥ प्राची दिशि सूरज की, किरण प्रगट भई । घर घर ग्यालणी, विलोवत बिलोयणा । निज निज मैया मै, आय उठी उठी बाल । आडौ कर करि रहै, मांडि रहै रोयणा ॥२॥ आलस भरे है नैण, बोलत कछु न वेण । रह्यो नहीं जात मोपे, देख्यां सुख पाइये। . कहे जिनहर्ष निहारो, मेरे प्राणनाथ । तेरी ही सूरत पर, चलि बलि जाइये ॥३॥
पाश्वनाथ स्तवन
ढाल || फाग री अमल कमल दल लोयणा हो, बदन सरोज विकास । मन मधुकर अटकी रह्यो हो, देखत ही प्रभु पास । मनमोहन मूरत सांवली हो, अहो पूरण तन मन आस ॥१॥ सुर सकलंकित जग भस्यो हो, कोइ न आवे दाय । तुझ दरसण फरसण करूं हो, हियडले हरख न माइ ॥२॥ साहिव सरजणहार तूं हो, करुणा रस-भंडार । परम दयाल कृपाल तूं हो, आतम तणा आधारि ॥३॥ हुं अपराधी मो परे हो, कूरम नयण निहाल । जिम तिम करि प्रतिपालियै हो, आपणो विरुद संभार ॥४॥ गुण कीधै जै गुण करै हो, ए तो जग आचार ।