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जिनह प्रन्थावली
सरीर सकोमल होत है पींजर, नीर विना जिम सके है वेली । तरवर तन विराज रहे कुच लागत है फल दोय नवेली । भोग सवादी तजया सब आज के, छाय रह्यो पिय मन्दिर मेली ।
हो
काती कंत पधारीया, सीधां वंछित काज ।
घर' दीपक उजवालीयां, गोरंगी जसराज ॥१२॥ सवैया
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कार्तिक मास पधारत प्रीतम, नौबत जैत नीसांण घुराओ । पैसत पोल बंदीजन सेवत, मोती वधावत नैण वरा ॥ बंटत सीरणी नयर अनोपस, गावत मंगल गीत सराओ । हास्य विनोद करै हुं चातुर, सुन्दर हंस सं देह पूराओ || १२ ||
दूहो
इह विधि बारह मास धन, वरने सुकवि विनोद | विवेक चतुरहि जे सुनै, पवित परम प्रमोद || १३|| ॥ इति श्री बारहमासी हा सवैया संपूरणं ॥ प्रभात-वर्णन पार्श्वनाथ स्तवन
राग ललित
विशाल तेरे लोयणा ।
जागो मेरे लाल, माता वामा कहे, मेरो जीव सुख लहै ।
१ मंदर, २ उजवालीयो, ३ वारे मास पूरा थया, पूगी मननी आस मनमान्या साजन मिल्या, दिन दिन अधिक उल्हास ।