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राजुल बारहमास
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सवैयो
श्रावण मास करी घनघोर, सजोर, सुघोर दमामो बजावत आयो । जलधर वरसत चात्रक बोलत, दादुर मोर सजोर करायो || चमकत दांमनी झूरत यांमनी, सालत देह में दुख सवायो । कुंकुम काजर मेलत कूंपलि, अंग आभूषण सरख मिटायो ॥ ६ ॥ दूहो
भाद्रवड़ो' भर गाजीयो', नदी खलक्यां नीर । बपीयौ ' पिउ पीउ करें, घरि आवो नणद रा वीर ॥ १० ॥ सवैयो
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भाद्रव वरखत मेह अहोनिसि, निरमल नीर सरोवर भरीया । नदी नाल प्रनाल वह असराल, सुगाल भये सव डूंगर हरीया । निरखत नैण सुर्वेण न बोलत, नाम रिदै अक प्रीतम धरीया । और कछु नवि मांनत देवकुं, दीसत देवल पथर परीया ॥ १० ॥ दूहो
आसू मास विदेस पीउ, विरह लगायो " बांण । सेझड़ीयां बिस घोलीयो, मन्दिर हुयो मसांण ॥ ११ ॥ सवैयो
आसू गयो मोह जोवतां चाटड़ी, नावत कन्त अजेय सहेली |
१ भादवड़ो २ जागीयो ३ बापहीयो ४ पीउ पीउ, ५ सुणे नणद, ६ थीए, ७ लगावे, ८ भयो ।