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राजुल बारहमास
२१६ लाल गुलाल अवीर उड़ावत, गावत गीत सुहावत गोरी। नीर सुगन्ध सरीर कु छांटत, रीझत गेह करी जब होरी ॥४॥
दहो चतुर महीनो' चैत को, पियाजी' चालणहार । तंग कसै तुरीयां तणां, साथै वड़ा सिरदार ॥५॥
सर्वयो , चैत्र सुमास वसंत की, रित सजित भये वनराय सवीने । केल कदम्बक अम्ब सु रायण. नाग पुनाग रहै डंबर कीने ॥ उंबरीक दाडिम श्रीफल खारिक, दाख विदाम विजोर समीने। कूलत मालती केतकी चम्पक, लीजियै प्रेमल नाह नगीने ॥५॥
दूहो प्रीउ बैसाखे हालीया', सैणां सीख करेह । ऊभी झूरै गोरड़ो, डव डब नैण भरेह ॥६॥
सयो वैसाख तुरंगम सझे हरि सागत, चरण जड़े उस लोह खमंगे। हथियार गुरज संभाय बंदूक, तुरस धनुष बरछी विरंगे। कमर कसे तनचारन लागत, टोप चगतर पैहर सुचंगे। मांगत सीख सुगोरी कन्या तव, बापड़ तुरीय सो जाय असंगे ॥६
१ महीने चैत रे, २ हुयोज, ३ कसिया, ४ साथीड़ा, ५ चल्लियो ६ सयणां,
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