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जिनहर्ष ग्रन्थावली नींद गई तिस भूख गई, भरतार विना कण सार न हंगी । योवन तो भयो जोर मतंगज, कैसे जसा वश मेरे रहेंगी। नेम गयो मेरो प्राण रह्यो तो, वियोग की पीर सरीर सहेंगो।५ पोस मैं रोस निवारि के आई, मिल्यो यदुनाथ कृपा करिक । कि, अवगुन मेरे गले कछु देखिके, के किसही सूं गलरिके। तुम तो सब जांण प्रवीण कहावत, तोरणे आई ग फिरिके। कहा लोक कहेंगे भले जु भले, जसराज वियोग हीयें खरिकें। ६ माह में नाह गयो चित चोरिके, प्रीति पुरातन तोरिके मोस्यं । जोर न है कछु नाहस्यं आसीरी, नाह वियोग दीयो तन सोसें। नाह की प्रीति कसव के गेंग ज्यं, मेरी तो मजीठ यूं तोस । के तो मिलो जसराज यदुपति, के तोतुम्हारी सेवक होस्युं । ७ फागुण में सखी फाग रमें, सब कामिनी कन्त वसन्त सुहायो । लाल गुलाल अवीर उड़ावत, तेल फुलेल चंपेल लगायो। चङ्ग मृदङ्ग उपङ्ग बजावत, गीत धमाल रसाल सुणायो। हूँ तो जसान हैं खेलूंगी फाग, वैरागी अज्यु मेरो नाहन आयो।८ चैत महीने में पात झरे द्रुमके सवही फिरि आन अहिं । . मो तन को सखी वान चल्यो, नहे नेम पीया जवथै जं गहें। मो थे भले वपरे द्रुमही फिरि, योवन रूप सुरंग ला है। मैं कहा आई कीउ जग में, सुख पायो नहें विधि कष्ट दरहे। मास बैशाख में दाख भई, अरु अम्बन के सिर मोर लगे हैं। कोकील पीउ पीउ बोलत, पीउ तो मोही कुं दूरि भगे हैं।