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नेमि राजिमती गीत
२११ पाल्यौ नव भव चौ नेहलौ, मिलीया शिवपुरि भलि रीत रे ।। जिनहरख कहे साजन तिके, जे पाले अविहड़ प्रीति रे॥ १३॥
इति श्री नेमि राजीमती स्वाध्याय सम्पूर्ण . .
नेमि राजिमती गीत 'सावण मास धनाधन वास, आवास में केलि करे नरनारी। दादुर मोर पपीया रहें, कहो कैसे कटे निशि घोर अंधारी । वीज झिलामिल होइ रही, कैसे जात सही समसेर समारी। आई मिल्यो, जसराज कहे नेम राजुल क रति लागे दुखारी । १ भादव में यदुनाथ गर्भ, कहो कैसे रहे मेरे प्राण अकेली। ., घोर घटा विकटा करि कैं, वरसे, डर घर माहे अकेली।।
आगे वियोग की देह दही, मेरी हीम दहे जैसे राज की वेली। राजुल कहे जसराज भई सखी, नेम पीया विण में तो गहेली । २ चंद की ज्योति उद्योत विराजत, मुख्य सयोगिणि चितमें पायो। पंकज फूले सरोवर मांझि, निरमल खीर ज्यं नीर दिखाया। मन्द भयो बरसात दिसु दिसि, पन्थ को कादम कीच मिटायो। राजुल भासे निहारेजसा कहे, आसू में सासू को जायो न आयो।३ कातिग मास उदास भई, राणी राजुल नेम चिना दुख पावे । प्राण सनेही सोई जमराज जो रूठे पीयारे,कॅ आणि मिलावे ।
वो रही ठोर दिवाली करे, नर दीपक मन्दिर ज्योति सुहावे । __हूँ रे दिवाली करूँगी तबे, मनमोहन कन्त जब घरि आवे ॥ ४ ___ मास मगसिर आयो सहेली रो, सीत अर्व मेरो देह दहेंगो।