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- जिनहर्प प्रन्थावली
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मंदिर न सुहावै एकली, वीनतड़ी सुणो यादवराय रे ॥ २ ॥ इम किम करि बोलुं एकली, दुखदायक आयौ माह रे । कोइ सयण न दीसे एहवौ, मैले मनमोहन नाह रे ॥ ३ ॥ वाल्हेसर सांभलि चीनती, जौ फागुन में नावेस रे ।
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तौहु चाचर रै मिसि, खेलती, होली मैं झंपावेस रे ॥ ४ ॥ नेम चैत महीनौ आवीयौ, यादवराय लीयौय वैराग रे मृगानयणी फाग रमै सखी, नेम तुझ विण कैसो फाग रे ॥ ५॥ वैशाखे अम्बवन मोरिया, मौरी सगली बनराय रे । विरहानल मुझ काया तपै, नेम तुझ विण घड़ी न सुहायरे ॥ ६ ॥ लू वाजे तावड़ आकरौ, नेम जेठ सुहावे छांह रे । आगुलीयां कैरी मुद्रड़ी, आतौ आवण लागी बांह रे ॥ ७ ॥ राजुल निज सखियां नै कहै, औतौ आयो मास आसाढ रे । निसनेही परिहरिनै गयो, इम गोरीसु करि गाढ रे ॥ ८ ॥ श्रावणी पावस ऊलस्यो, दुखियां दुखि सांले राति रे । बीजलियां लीये रे झब्रूकड़ा, तिम विरहिणि दाझे गात रे । ६ । भाद्रवड़ौ वरसे - चिहुदिसैं, नेम- नदीये खलक्या नीर रे । कूण सुणै कहु किण आगलै, घरि नहीय नणद रौ वीर रे ॥१०॥ आसू, आयौ अलखांमणौ, निरमल जल नदीय निवांण रे । सासू-जायौ आयौ नहीं, इस रहीये केम सुजाण रे ॥ ११ ॥ काती कता विण कामिनी, चौल्यौ बारह मास रे । राजुल मन दृढ़ करि आदयौ, संयम नेमीसर पास रे || १२ ||
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