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नेमीनाथ नो बारेमासो
२१३ राति में उठं चमक्की चमक्की के, नींद न आवत नैन जगे हैं। कन्त विना जसराज विराजी में, कोण दिसी केउ कोउ सगे हैं।१०. जेठ भख सखी जेठ के वासर, आतपतो रवि जोर तप हैं। नाह वियोग दीयो करवत जो, हीयो खराखरि मेरो कपे हैं। राति रू द्योस लीये जपमाल, पीया जी पीया मन मेरो जपे हैं। नाथ मिलें तो टलें दुख को दिन, राजुल असे जसा विलपे हैं।११ चादर तो अब आदर कीनो, अवाज भइ यु धनाधन की। ऋति पावस जांणिके आविदेसी, निवारणि जारि विघातनकी। मेरो नाथ गयो फिरि आयो नहैं, किसी कुंकडं बात मेरे मनकी। दृग नींद गई विणि वींद जसा, गई भूख अउखभई अन्नकी १२ राजुल राजकुमारि विचारि के, संयम नाथके हाथ गयो है । पंच समिति गुपत्ति धरी निज, चित्त में कर्म समूल दह्यो है। राग द्वेष न मोह माया न हे, उज्जल केवल ग्यान लह्यो । दम्पति जाइ वसे शिव गेह में, नेह खरो जसराज कह्यो हैं ।१३ । . ॥ इति श्री नेमि राजिमति बारमास समाप्त ।। . ___.. नेमीनाथ नो बारेमासो कहिजो सन्देसो नेम नै, जादवपत नै जी जाय । निस दिन झूरे गोरड़ी, गोरी धान न खाय ॥ ०१॥ वैशाखे वन मोरीया, मोरी' -अ.सहंकार । . . .
१ फहिज्यो रे संदेसो जाएवजी नै जाय। २ मोरी सहु वनराय।