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जिनहर्य ग्रन्थावली नवभवनउ तुझ सुनेहलउ लागउ जिम चोल मजीठरे । 'पाणीवल मइ तोड़ीदीयो, मुझ भइ स्यउ अवगुण दीठरे ।।२।।
सासूना जाया बालहा, मंदिर आवो एकवार रे । __ कहीये सुखदुखनी वातड़ी, कामणगारा भरतार रे ॥३॥
तुं तउ आछारे बेटा सुसराना, म्हारी वीनतड़ी अवधारि रे । मुझने राखउ आपण कन्हइ, रड़ती मू कउ कांइ नारि रे ॥४॥ मुझ नयणे नावे नोंदडी, म्हारउ जीव धरइ नहीं धीर रे। मिलीये तन मन मेली कर, म्हारी सगी नणद रा वीर रे ॥५ वासर तउ जिम तिम वउलिसु, रातड़ियां मालइ सइण रे। 'निसनेही नाह थई गयु मुझ मातउ पावस नइणरे ॥६॥ वारु गउख सुरंगा मालीया, तुझ विणि लागइ दुखखाण रे। तोरण आवी पाछउ वल्यड, एतउ वागा विरह नीसाण रे ।। ऊंची गोखइ उभी रही, थारी निस दिन जोर चाट रे। तुं तउ आवि सहेजा साहिना, जिमथाये मुझ गहगाट रे ।।८ राजुल रंग भर संदेशडा, पाठनीया पथी हाथि रे। . जिनहरप सुपरि संजम ग्रही, सिव पहुँती प्रीतम साथि रे ॥६॥
नेमि राजिमती गीत
दाल-माखी नी जव म्हारो साहिब तोरण आयौ हीयड हरपन माय सांवलीया। साहिब रे हूँ साथि चलूंगी, साथ चलूगी तोलारि फिरूंगी।