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________________ नेमि राजिमती स्तवनानि १६७० साहिबा सुनेह लगाय, केसरीया साहिब रे हूँ साथ फिरूंगी ।।। जव म्हारौ साहिब फेरि सधायो, दे पसूआं सिर दोस । सां। नयण झरइ मोरा बालंभ पाखइ, ज्यु आसू रो ओस ॥ २ ॥ कुण धूतारी कामणगारी, जिण भोलायो म्हारो नाह । सां । अष्ट भवां नो नेम नगीनो, तोडि गयो देई दाह । के०||३|| किण ही री कह्यो नेम न सुणिजइ कीजै नही मन सोक । सां । देखि सकइ नहीं नेह परायो, परघर भांजा लोक ॥ ४ ॥ तूं मुझ प्रीतम हूँ तुम नारी, ए आपण री सगाई । सा । कहइ जिनहरप राजुल नेमि मिलीया साची प्रीति लगाई। ५॥ श्री नेमि राजिमती गीतम् ढाल-कालहरा रागे कांइ रीसाणा हो नेम नगीना म्हारा लाल । यो परिवार हो, सधइ भीना म्हारा लाल ॥१॥ विरह विछोही हो, ऊभी छोड़ी । म्हां । प्रीति पुराणी हो, तई तउ तोड़ी ॥ २ ॥ म्हां।। सयण सनेही हो, कुरुख न राखइ । म्हां । जे सुकुलीणा हो, छह न दाखइ ।। ३ म्हां ।। नेमि न हुइजइ हो, निपट निरागी । म्हां । केहइ अवगुण हो, मुझ ने त्यागी ॥ ४॥ म्हां ।। सासू जायो हो, मदिर आवउ हो । म्हां ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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