________________
१६४
जिनहर्ष ग्रन्थावली
सुख देवानी मनमइ स्यई नागउ अजी रे जो || ४ || राजि म करिज्यो रीस, कहु छं विसवा बीस । निज पद आपरउ रे नवि मांगें बीजउ हुँ सही रे जो ॥ बावीसमा अरिहन्त, भयभंजण भगवंत ।
बात हीयानी रे जिनहरपड़ तुझ आगलि कही रे जो ॥ नेमनाथ गीत
पाइ परूं विनती करू, बूझ एक विचार | प्राण सनेही मांहरौ हो, मनमोहन भरतार ||१|| बहिनए नेमि नगीनो फिर गयौ, फिर गयौ क्युं रथ मोरी । कामणगारो नांहलौ, वासुं प्रीत अपार ॥
इण भवऔहिज वालहो हो, हुं आकी खिजमतगार ||२|| अवला विण दूषण तजी, काणौ बहुतैं रोस । ज्युं आयौ त्युं फिर गयौ हो, दे पसुअन सिर दोस ॥३॥ रहि न सकुं हुं प्रिय विना, ज्युं मछली विण नीर | राति दिवस मनमें धरु हो, म्हारां सगीय निणंदरौ वीर ||४|| राजल ऊजलगिर चढी, करि मनमें इकतार ।
प्रिय पहली मुगत गई हो, कहि जिनहरख सुविचार | ॥ इति श्री नेमनाथ गीतं ॥
नेम राजिमती गीत
ढाल - ऊभी भावलदे राणी०
ऊभीराजुलदे राणी अरजकरे छै, अबकड चउमासउ घरिकीजैहो ।