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नेमिनाथ स्तवनानि
१६१ समता सागर आगर गुण तणउ, राग नहीं नहीं रे रीस ।या० चउपन दिन छदमस्थ पणइ) रया, सुक्ल हीयइ धरी रे ध्यान । मास आसोज अमावस्या दिनइ, पाम्यु केवलज्ञान । या० । श्रीगिरनार अचलगिरि ऊपरइ, समवसरण रचयउ रे ताम |या० आन्या सुरपति सुरनर सहु मिली, गावइ प्रभु गुण ग्राम । या० धरमतणी द्यइ जिनवर देसणा, मीठो अमृतधार । या० । सांभलता प्रतिबोध लहइ घणा, धरमी जे नरनारि ॥ या० ॥ गणधर अहारह प्रभु थापीया, मुनिवर सहस अहार । या० । सहस चालीस अनोपम साधवी, परम पवित्र व्रतधार । या० । लाख अधिक उगणोत्तर सहसु सं, श्रमणोपासक रे जाणि या० त्रिण लाख छत्रीस सहस भली, ए श्राविका गण खाणि या० सहस वरस आउषु भोगवी, करम तणु करी अन्त । या० । उजुआली आठिम आसाढनी, मुगतिपुरी पहुचंतः ॥ या० ॥ अजर अमर अक्षय सुख पामीया, पाम्यावली पंचानंत । या०। मझनइ पिणि अविचल सुख सास्वता, आपउ श्री भगवंत या० हुँ अपराधीनिगुणी अविरती, बहु अवगुणनी रे खाणि । या०। दोस किसा? दाखु माहरा, कहतां आवइ रे काणि ||या० ॥ करुणासागर तुं भारी खमउ, तुं सहुंनउ प्रतिपाल || या० ॥ माहरी करणी मतसंभारिज्यो, निखरउ पिणि तुझ बाल आया। पसु छोडाव्यां तइं प्रभु कुरलता, दुखिया देखीरे तेह ॥ या० ॥ तिम मुझनइ पिणि भव बंधण थकी, छोडावउ गुण गेह ।या०