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मल्लिनाथ स्तवन
१८६ दरसण देई वाल्हा नयणां नइ ठारउ लाल ॥१म।। नाम सुणी नइ होयड़उ हरषित थायइ । मिलिवा थांनइरे वाल्हा अधिक ऊमाहइ लाल । म ॥ जांणु चरणे प्रभुजी नइ रहीयइ,
बदन कमल देखी देखी गह गहीयइ लाल ॥२॥ सुन्दर सूरति लाल अधिक विराजइ,
त्रिभुवन माहे एहवीकेहती न छाजइ लाल ॥म।। बारह सूरज लाल निलवट दीपइ,
तेज इंद्रादिक सहुना जीपइ जीपइलाल ॥३॥ मोहन सूरति लाल सहुने सुहावइ,
तुझ गुण मोटा चरण सीस नमावइ लाल । म । दीठा घुणाही लाल देवलं देवा,
पिणिमन न वहइ तेहनी करतां सेवा लाल ॥४ मा। तुं तउ अनंता लाल गुणनउ आगर, - तुझ नइ नत नागर तुं तउ सुखनउ सागर लाल । म । भब्य रिदियॉचुज लाल तुं तउविभाकर,
ताहरी तउ वाणी लागइ मीठी साकर लाल ॥५ म।। राति दिवस लाल मनमइ तुं वसीयु,
___· कमल भमर जिम मेल्हइ नहीं रसीयउ लाल ! म । मोहणगारा लाल मोह लगायउ, . __ तुझविणि कोई माहरइ चित्त न भायउ लाल ॥६ म।।