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________________ आदिनाथ स्तवनानि मारग चलतां छहरी पालौ, “टालो मनसा पाप नी । सचित विधार धन भूल न कीजै, ले लाहो लक्ष्मी छती ॥३॥ थावच्चो सेलग शुक मुनिवर, पांडव वलभद्र जाणीयै । साधु अनंता उपरि सीधा, तिण सिद्ध क्षेत्र वखाणीयै ॥४॥ पूर्व निनांणुवार प्रथम जिन, इण गिरि आई समोसर्या । श्रीमुख पंडुरगिरी गुण गावै, श्रीमंधर जिन गुण भयो ॥५॥ जिम कुंजर ‘माहे ऐरापति, देवां मांहि सुरपती । तिम सेत्र जो तीरथ मांहे, जिम सतियां सीता सती ॥६॥ सुकलीणी गुणलीणी -माखे, कीजे हो प्रीतम जातडी । जिण वेला ऊजलगिर भेटीस, ते जिनहरष सफल घडी ॥७॥ आदिनाथ सलोको प्रणमु सरसति सुमति दातारो, हंस गमण पुस्तक वीण धारो। नाम लीयां दिन होइ सबाडो, आदि जिणेसर कहिस्यु पवाडो॥१॥ पूरब देस देसां सुलहीजै, नगरी विनाता नाम कहीजै । तास धणी छौ नाभि नरिंदो, राज करै तिहां अभिनव इंदो ॥२॥ मुरदेवा मांन घणे पटरांणी, रूपै दीदार जाणै इन्द्राणी'। सेज सुहाली मंदिर सूती, सुपन लहै दूसात सपूती ।।३।। गैंवर धोरी साइलो लच्छी, दाम सिसी रवि वजा अपूछी । कुंभ पदमसर उदधि सराले, रतन तणो दिग अगनि निहालै ॥४॥ जागी मरुदेवा सुपन लहंती, राइ कन्है गई हरख घरंती । सुपन कह्या फल नाभि प्रकासे, अंगज निजघर होसी इम मासै ||
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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