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- आदिनाथ स्तवनानिः
१६७ गरभतणी थिति-पूरी जी हुई,जनम्या रिषभ जिण हरख्या सकोइ। छपन दिसाकुमरि मिलि गायो, चौसठि सुरपति अचल न्हवायौ।६। माता मरुदेवा लूण उतारै, थारै दरसण रै जाउँ बलहारै।
आवो कीकाजी गोद हमारी, पूत बलईयां ल्यु नित थारी ॥७॥ माइडी साम्हो देखि नान्हडीया,आज रीसांणा किणसौंजी लडीया। पाई सोवण में बाजै घूवरीया, मात सनेही गाथै हालरीया ॥८॥ सैसव घर तरुणायौ जी आयो, राज तणौ पद रिख जी पायो। नाभि नरेसर हिव बड़: दावै, रिपम विवाह करै परणावै ॥६॥ सुभ दिन सुभ मुहूरत सम वारो, वांभण थप्यो लगन उदारो। पंच सवद धुरि मंगल वाजै, ढोल-निसांणे अम्बर गाजे ॥१०॥ वेह वणाइ मांडी जी चंवरी, लाडिली आई अभिनव कुमरी। षोडस तण-सिनगार वणाया, मांडणा कर पग रूडा मंडाया ।११। कोर जुगल, इक साड़ी पहिराबी, पहिरण चरणा सोहे सवाई।
सोवन चूडलो बांह विराजै, रतन जडित कंचू उर छाजै ॥१२॥ __ हार जडित मणि,कंचण माला,कांने कंचण.धड़ कहरती उजवाला।
नाक सोवन ची लछ- लहक्क, काजल नयणां संग.गहक्क ॥१३॥ तिलक सोहै सिर-गुथी जीवणी, सुनंदा सुमंगला सारंग नैणी.. गीत झीणै सुर-कामिणी गावै, विप्र-तिहां-हथलेचो जोड़ावै ॥१४॥ च्यार फेरा विध सेती जी फिरिया, रिषम जिणेसर परण उतरीया। गौरी जी गावै तोडरमल जीती, वीवाह हुौ सबलै-वहीतौ॥१५॥ भरत प्रमुख सौ दीकरा हुआ, वांटि-नै- देस- दीया जू जूत्रा।