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जिनहर्ष-ग्रन्थावली
१६१ पर उपगारी तुझ सारीखा, आपइ अविचल सुख सीर रे ॥१०॥ उत्तमनी अविहड़ प्रीतड़ी, जगनायक प्रथम जिणंद रे। कर जोड़ी कहुं मुझ दीजीयइ, जिनहरप अचल आणंद रे ॥११॥
आदिनाथ स्तवन ढाल-१ थेतउ अगलारा खडिया प्राज्यो, राय आदा सहेली
सहेली लाइज्यो राजि ॥ एहनी ।। म्हेतउ साहिवां रे चरणे आया, सुख ताजा सनेही हो देज्यो राजि । म्हेतउ वाल्हारा दरसण पाया।सु.। म्हारड् अमीयांरा पावस वूठा।
म्हारा पातक गया अपूठा ॥ १०॥ नीकउ साहिवारउ रूप विराजइ ।सु। दीठां भवतणी भावठि भाजइ । थारी सूरति अधिक सुहावइ ।सु। देखी हीयडलइ हरख न मावइ-१२, थेतउ भगतांरा अंतरजामी ।सु। थानइ वीनती करां सिर नामी सु.। थांस अलगा म्हांनइ काइ राखासु।मीठा साहिब मीठड़र माखउ-३ मोटा छेह न दाखड़ किवारइ ।सु। मोटा आपणउ विरुद संभारइ । मोटारी मोटीमति छाजइ ।सु। मोटा लीयां मूको करता लाजइ॥४॥ ढाल-२ वाटका वटाऊ वीरा राजिवीनती म्हारी कहीयो जाइ,अरे कहीयो जाइ । अब पके दोऊ नोबून पके, टपक टपक रस जाइ ॥ वी. एहनी।। प्राणरा वाल्हेसर म्हारा एक वीनती, म्हारी मानिज्यो राजि ।
अरे भानिज्यो राजि । थे तउ पर उपगारी छउ हितकारी,सफल करे ज्यो म्हारा काज ।५ वंछित दीजइ विलंब न कीजई,लीजइ २ जस जगमाहि वी. प्रा.॥