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आदिनाथ स्तवनानि
श्री आदिनाथ स्तवन ढाल-श्रावक लखमी हो खरचीयइ ।। एहनी ।। म्हारा मनना मान्या रे साहिबा, निज सेवकनी अरदास रे । सांभली श्रवने फरुणा करी, पुरउ मुझ मननी आस रे ॥१॥ म्हारा सिर नउ रे तु तउ सेहरउ, म्हारा बातमनउ आधार रे । सेवक जाणी पोता तणउ, अलवेसर करि उपगार रे ॥२ म्हा।। सुर सगला ही मइ मुकीया, कई पवन तणी परिजोइ रे । दुःख भांजइ जे दुरबीयां तणा, तुझ पाखइ अवरन कोइ रे ॥३॥ करुणा कीजइ मुझ उपरई, तुतउ करुणावंत कृपाल रे। तुम नइ वा हिवइ हुं दास, दुखियांनी लाज दयाल रे ॥४॥ तुम चइ काइ कुमणां न थी, भरीयार द्धिसिद्धि भएडार रे। मुझ वेला कठिन थई रह्या, तेत्या माटइ करतार रे ॥शा तारई वेड़ी जिम बूडतां, भीषण दरिया माहि रे ।। तिम भवसायर माहे पडियां, साहित्र तारउ कर साहि रे ॥६॥ साहिब जी सु गुणाछउ तुम्हे, हुं तउ निगुणउ तुस तोल रे । तउही पिणि मुझनइ वारिस्पुर,निज विरुद निहाली अमोल रे ७१ दीणा दीणा सुणि बोलना, भेदी जइ किम हीच जेह रे । ते साहिब नइ स्यु कीजीयइ, परिहरीयइ दूरह तेहरे ॥ ८ म्हा।। संसारी सुर सहु स्वारथी, निगुणति तउ निस नेह रे । । दुरजन सारीखा दीसता, खिणि मांहि दिखालइ छेह रे ॥म्हा।। गुणनइ अवगुण जोवड नही, गरु भा जे गुणे गंभीर रे ।