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जिनहर्ष-ग्रन्थावली
१५६ श्री आदिनाथ स्तवन
ढाल-प्रथम भौरावण दीठउ ॥ एहनी ।। रिषभ जिणसर स्वामि, चरण नमु सिरनामी ।
युगला- धरम निवारण, भवदुख सायर तारण ॥१॥ वीनतड़ी अवधारु, जामण मरण निवारउ ।
तुतउ करणा नउ सागर, तु प्रभु गुणमथि बागर ॥२॥ तुझ मूरति मन मोहइ, कनक वरण तनु सोहइ ।
ममता मोह निवायु, तइ समता रस धायु ॥३॥ तुझ दरसण दुःख भागइ, वाल्हर सहु नइ तु लागइ ।
तु मुझ अंतर जामी, नामइ नव निधि पानी ॥४॥ धन-धन मरुदेवा माता, जिणि त्रिभुवन पति जाता।
प्रगट्यू त्रिभुवन दीवउ, जगनायक चिरजीवउ ॥१॥ सेवा सुरपति सारइ, देसण तन मन ठारइ ।
तु प्रभु मोहण गारउ, तइ मन मोबउ हमारउ ॥६॥ पलिजार साहिव तीरी, आस्या पूरउ नइ मोरी । . घणु घणु तुमने स्यु कहीयइ, तुमथी शिवपद लहीयइ ॥७॥ चाहइ चंद्र चकोरा, मेहागम जिम मोरा ।
. चकवी दिनकर चाहई, तिम मन मिलिवा उमाहइ ॥८॥ तुम्हे म्हारा मानीता ठाकुर, हुं तउ तुम्हारउ छुचाकर । मुझ जिनहरष संभारउ, मत साहिबजी वीसारउ ।।।
' इति है