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________________ १५८ आदिनाथ स्तवनानि सुन्दर छवी प्रभुजीन देखी, जेहनी प्रीति न जागह । भारी करमा ते जाणी जई, तेहना दुख किम भागः || ५ || पर उपगारी तुम परमेसर, स्वारथ विगि निस्तारइ । तउपिणि सूद प्रथम मिथ्याती, तुझनह रिदय न धारड़ || ६ || वरदेव मुझ दीठा नंगम, जे बहु अवगुण भरीया । माग संजोगे मुझने मिलीया, साहिब गुणना दरिया || ७ || नाभिराय मरुदेवा नंदन, कीरति त्रिभुवन सोहर | कह जिनहरप हरप सं जेता, भवियण जण मनमोह ||८|| ॥ इति ॥ आदि नाथ स्तवनम् राग - राम गिरी यदि जिन जाउं हुं बलिहारी । रिदय कमल मेरो कमल ज्युं उलस्य उ, सूरति नयण निहारी ||१|| सुर सुरपति नरपति सब मोहे, मूरति मोहरण गारी । सीतल नयण वयण प्रभु सीतल, सीतल कांति तुम्हारी || २ || प्रभु क अंग विराजत सुन्दर, अंगीया प्रति सिणगारी । देखि देखि उलसत मेरी छतियां, अखियां अमृत ठारी ||३ श्रा || युगला धरम निवारण जग गुरु, ईति अनीति निवारी | समता भजि संजम क्युं राचे, तजि माया संसारी ||४|| करम आठ काठ ज्यु जारे, सुक्ख अनंत लहारी । कहत जिनहरप मुगति पद दीजड़ तुम हउ पर उपगारी || ५ ||
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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