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आदिनाथ स्तवनानि चउमुख त्रिभुवन नाह, महिमा रेरजेहनउ त्रिभुवन गाजीयु रे।१५॥ राज रिद्धि संपद रंमणी इह लोकनी । मांगु नही महाराज,मुझ नहरे २ घउ संपद शिवलोकनी रे॥१६॥ साचउ साहिब मई पादरीयउ-परीखनइ रे। .. खोटा दीधा छोड़ि, तारउ रे २ निज सेवक जिनहरप नइ रे ॥१७॥
इति श्री विमलाचल मंडण श्री चतुर्मुख रिभपदेव स्तवने __ शत्रुञ्जय आदिनाथ नमस्कार . प्रथम जिणेसर आदिनाथ शत्रुजय मंडण, पाप ताप संताप मरण जामण दुख खंडण, सुख पूरण सुरतरु समान सेवक नइ स्वामी, . मरुदेवा नउ अंगजात नमीये सिरनामी । नाभिराय कुलवर कमल दीपावण दिणराय ! . . वंस इषांगई सोहतर प्रणमइ सुरपति पाय ॥१॥ करम खपाची जिण वरिंद केवल जब पामड, समवसरण सुर रचइ ताम प्रभु ना सिर नामह, अणवाया वाजिन कोडि वाज नभ मंडल. तीन छत्र प्रभु धरे सीस आवी आखंडल । चामर वीजई देवगण दीयह मधुर उपदेश । मीठउ लागे सहु भणी साकर थकी विसेस ॥२॥ अतिसय च्यारे जनम थकी प्रभुजीनइ थायई, . . .