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जिनहर्ष-ग्रन्थावली अवर सुरासुर ध्यावइ जे तुझ अवगणइ रे । तृष्णातुर मति हीण, गंगा रे २ कांठइ ते कूई खणइ रे ॥५॥ अमृत फल तजि हंस करइ किंपाक नी रे । विस पीयइ अमृत छोड़ि, सुरतरु रे २ कापड आशा आकनी रे॥६॥ मंदमती कुमती सठ परिहरि पाचनइ रे । देखी झलहल ज्योति, गाढउ रे २ गांठई बांधइ काचनइ रो॥७॥ ऐरापति सारीखउ गईवर परिहरी रे । खर बांधइ घरवार, रूडउ रे २ आवइ ऊकरड़ी चरी रे ॥८॥ मोटा साहिब सुरीसाई रहइ रे । जे ल्यइ रांक मनाइ, तेतउ रे २ रांक तणी सोभा लहइ रे ।।६।। कंचण नाखी मूरख पीतल आदरइ रे । मिथ्याती मतिमंद,तुझ नइ रे २जे तजि अवर धणी करइ रे ।१०। शिवा सोमजी रूपजी साह सभागीया रे । न्याति भली पोरवाड़, एहवा रे२ देवल जिणे करावीया रे ॥११॥ अभिनव जाणे वीजड शेत्रौंजय अवतर्यउरे । शिव सुख तणउ उपाय,महीयल रे २ समरथ ए तीरथ कयुरे।१२। नवउ करावइ जिन गृह निज द्रव्यइ करी रे । ते पहुँचइ सुर लोक, वाणी रे २ महानिसीथई ऊचरी रे ॥१३॥ पुन्य तणउ खातउ बांधइ ते आदमी रे। जोडइ कर्मना वर्ग, मुझ मन रे २ साची सदहणा रमी ॥१४॥ रिपम जिणेसर विमलाचल नउ राजीयउ रे।