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आदिनाथ स्तवनानि ऊचउ परवत अनुपम सोहइ, अपर जाणि कैलासी। .. साधु अनंता इणि गिरि सीधा, सिद्ध अनंत निवासी ३५। मुरति प्रभुनी अधिक विराजई, सूरज ज्योति प्रकासी । जिम २ नयणे हरि करि निरखु, तिम २ रिदय विकासी ॥४व।। केसर चंदन मृग मद मेली, जिनवर पूज रचासी । ते त्रिभुवन मई पूजा लहिस्यइ, त्रिभुवन कमला दासी ।।५।। भाव धरी डूगर जे फरसइ, दुरगति तेह न जासी । रोग सोग भय भूत भयंकर, नामई जायइ नासी ॥६व।। पाजइ चड़तां ऊलट प्राणी, जे प्रभुना गुण गासी । भव भव ना पातक थी तेहनउ, आतम निरमल थासी ॥७॥ शत्रौंजा नउ संघ चलावइ, यात्रा करई निरासी । चउगति ना भय भ्रमण निवारइ, छेदइ भवनी पासी ॥८॥ धन धन नर-नारी शत्रुजय, आवी रहइ उपासी । छहरी पालइ पाप पखालइ, लहइ जिनहरष विलासी ॥६॥
इति श्री शत्रु जय मडन श्री रिषभदेव स्तवनं विमलाचल मंडन श्री रिषभदेव स्तवनम्
___ढाल।। रसीयानी ।। एदेशी ।। रिपभ जिणेसर अलवेसर जयउ, श्रीशत्रुञ्जय रे नाथ । मोरा प्रीतम चालउ जइयइ रे प्रभुनइ पूजिवा, पावन करीयइ रे हाथ ।मो१रि।। ए तीरथ नर महिमा अति घणउ, कहतां नावइ रे पार मो। - समवसर्या जिहां प्रथम जिणेसरु, पूरव निवाणु रे वार ।मोररि।