________________
जिनदर्प प्रन्थावली
सीस सोहड़ मुगट सुघटउ, कान कुंडल दोड़ | एक जाणे चंद्र मंडल, एक दिनकर द्यति होइ ॥ ५म || उर हार एकावली विराजड़ कनकमाल विशाल ।
बांहेत सोहड़ बहिरखा, वण्यउ तिलक सुंदरमाल |
अंग चंगी अंगीया अति, जटित कटि कणदोर |
फल्यउ फुल्यउ जागि सुरतरु, देखी नाचइ मन मोर ॥ ६म || मन आस पूरइ दुरित चूरह, होइ कोड़ि कल्याण । नव निधि पास रह उलासई सुजस झलकड़ माग | स्वामि नाम मुगति पामई, अवरनी सी बात । ए सकल तीरथ नाथ समस्थ, जय २ त्रिभवन तात ॥७ म|| पूरव निवाणु वार प्रभु जी, कीयउ इहां विश्राम । रायण हेठ समवसरिया, पवित्र करिवा ठाम | धन धन्न भरथ जिहां शत्रुंजय, कहह सीमंधर स्वामि । भविक जन नइ तारिवा, जिनहरप करइ गुण ग्राम इति श्री शत्रु जय स्तवनं
.
श्री शत्रुंजय मंडण श्रीरिषभदेव स्तवन
||ढाल।। म्हारा ग्रातमराम किरिए दिन गेत्रु ज जास्यु । ए देशी ।। बंदु रिपम जिणंद विमलाचल नउ वासी । विमलाचल नउ स्वामि नमिसु, हीयडड़ धरिय उलासी ॥ १६ ॥ कंच काया धनुष - पांचसह, लंछण वृषभ सुहासी ।
ऊषु प्रभुजी न कहीयइ, पूरव लाख चउरासी | २ |
"
१३७
1
||८||