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आदिनाथ स्तवनानि
श्री शत्रुञ्जय स्तवन
||ढाल || होडोलरगानी ॥ ए देशी ॥ आज मंह गिरिराज भेट्य, शत्रुंजय सिरदार | साधु सीधा जिहा अनंता, कहत नाव पार । विमल गिरि वर नमड़ सुर वर, तीन भवन विख्यात |
पाप ताप संताप नासह, विधि सु जउ करीयड़ जात ॥ १ ॥ मनमोहनां माइ भेटीयर विमल गिरिंद |
सचित प्रहारी पादचारी, एक आहारी होइ ।
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समकित धारी भुई संथारी, ब्रह्मचारी जोड़ ।
करs पड़िकमण निरंतर पूजा जिन शुभ माय ।
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वर आरंभ कोइ न करह, दुरगति तेह न जाइ || २ ||
एक जीभ एहनउ सुजस कहतां, कदी नाव पार । ए डुंगरउ मनमोहन गारउ, देखतां सुखकार । जिम २ निहालु पाप टालु, हीयइ हरख न माइ । एह थी किम दूरी रहीयह, दीठड़ां आवई दाइ || ३म || जिणिऊपर श्री रिखम जिनना, देहरा दीपंत । गगन सु जाणे वाद मांाउ, दंड धज लहकंत । सुर भुवन सरिख चित्त मोह, देखतां आनंद |
मांहि त्रिभुवन नाथ सोहड़, नाभि नृपति कुलचंद || ४ ||
मूरति मोहन नी अधिक दीपर, कांति झाक झमाल |
जोयतां सीतलथाइ लोयण, टलइ पातक जाल ॥
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