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________________ आदिनाथ स्तवनानि श्री शत्रुञ्जय स्तवन ||ढाल || होडोलरगानी ॥ ए देशी ॥ आज मंह गिरिराज भेट्य, शत्रुंजय सिरदार | साधु सीधा जिहा अनंता, कहत नाव पार । विमल गिरि वर नमड़ सुर वर, तीन भवन विख्यात | पाप ताप संताप नासह, विधि सु जउ करीयड़ जात ॥ १ ॥ मनमोहनां माइ भेटीयर विमल गिरिंद | सचित प्रहारी पादचारी, एक आहारी होइ । じ समकित धारी भुई संथारी, ब्रह्मचारी जोड़ । करs पड़िकमण निरंतर पूजा जिन शुभ माय । १३६ वर आरंभ कोइ न करह, दुरगति तेह न जाइ || २ || एक जीभ एहनउ सुजस कहतां, कदी नाव पार । ए डुंगरउ मनमोहन गारउ, देखतां सुखकार । जिम २ निहालु पाप टालु, हीयइ हरख न माइ । एह थी किम दूरी रहीयह, दीठड़ां आवई दाइ || ३म || जिणिऊपर श्री रिखम जिनना, देहरा दीपंत । गगन सु जाणे वाद मांाउ, दंड धज लहकंत । सुर भुवन सरिख चित्त मोह, देखतां आनंद | मांहि त्रिभुवन नाथ सोहड़, नाभि नृपति कुलचंद || ४ || मूरति मोहन नी अधिक दीपर, कांति झाक झमाल | जोयतां सीतलथाइ लोयण, टलइ पातक जाल ॥ 1 +
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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