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जिनहर्ष-ग्रन्थावली
१३६ नेमि विना वीसे जिन चड्या, ए गिरि पुन्यनी रे रासी ।मो। अजित जिणेसर शाँति जिन सोलमा,इणि गिरि रह्या रे चउमासिामो खरतर वसही मूरति मन गमइ, पूजा करीयइ. रे जास । सहस्रकूट नमीयइ बहु भाव सु, पूगइ मननी रे पास मोथरि।। अष्टापद ना देव जुहारीयइ, पगलां रायणि रे हेठि ।मो। - 'पगला नवलां गणधरनां भला, तेहनी करीयइ रे भेटि मोरि।। गणधर श्रीपुडरिक जुहारीयइ, वीजा पिणि बहु रे देव ।मो। मोटी मूरति अदवुद नाथनी, तेहनी करीयइ रे सेव ॥मो६। रि।। चउमुख प्रतिमा च्यारी सुहामणी, शिवा सोमजी नइ उद्धार |मो। उलखा झोल चेलण तलावड़ी, सिधवड़ घणई रे विस्तार मो७। ए तीरथ सरिखउ जग को नही, सीधा साधु अनंत ।मो। तारइ ए तीरथ संसार थी, जिनवर एम कहंत ॥ मो०८ रि०॥ अधिक विराज्या गिरिवर ऊपरइ , नाभि नृपति ना रे नंद मो। मरुदेवा नउ रे अंगज भेटइयइ, यह जिनहरप आनंद मोह।। , इति श्री विमलाचल मडन श्री रिपभदेव स्तवनं .
श्री शत्रुञ्जय स्तवनम् ढाल ॥ धीर वखाणी राणी चेलणा जी एहनी ।। विमलगिरि तरथ भेटीयड् जी, मेटोयह भव तणा पाप ।
आपदा दूरि निवारीयइ जी, तारीयइ आतमा आप ॥ १वि ॥ ए गिरि नउ महिमा घणउ जी, एक जीभई न कहवाय । सुरपति सहस जीमई कहइ जी, तउ पिणि कबउ रे न जाइ ।२वि।
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