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जिनहर्ष-ग्रन्थावली
१२७ श्री विमलाचल मण्डन रिषभनाथ स्तव ___ ढाल-कोइलउ परबत धुंधल लउरे लो ।। एहनी ॥
श्री विमलाचल गुण निलउ रे लो,
जिहां श्री रिखम जिणंद रे । जात्रीड़ा । शिखर ऊपरी सोहइ भला रे लो, जिम एरावण इंद रे ॥जा.१श्री। दरसण जेहनउ देखता रे लो, हियड़उ हरषित होउ रे । जा. । मन विकसइ तन उलसइ रे लो, नयण ठरई वारु दोइ रे।।जा. २॥ जोइ रहियइ सामहउ रे लो , नयणे नयण मिलाइ रे । जा.। तउहि त्रिपति न पामीयइ रे लो, सूरति सरस सुहाई रे ।जा.३श्री। पुन्य प्रबल पोतइ हुवह रे लो, तउ पामी जइ संग रे । जा० । जेहनइ संगई उपजइ रे लो, नव नव रंग अभंग रे । जा.४श्री ।। सुन्दर रुप सुहामणउ रे लो, देखी मोहइ मन रे । जा० । वाल्हउ लागइ वाल्हउ रे लो, जिम लोभी नई धन्न रे ।जा०५श्री। प्रभु चरणे चित लाइयह रे लो, निशि दिन रहीयइ पासिरे ।जा०] खासी खिजमति कीजियइ रे लो, तउ पुगइ मन आसरे जा०६श्री। साहिब नी सेवा थकी रे लो, लहिये लील विलासरे । जा० । फूल तणी संगति थकी रे लो, तेल लहइ जिम वासरे ॥जा०७श्री।। सोम न झरी मोटा तणी रे लो, थईयइ तुरत निहाल रे । जा० । जनम मरण संसार ना रे लो, टालइ सगला सालरे ।।जा०८श्री।। नामिनंदण चंदण जिसउ रे लो, मरुदेवा नउ जातरे । जा० । मेटिजइ जिनहरख सुरे लो, भावई करी विख्यात रे॥जा०६श्री।।