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उपदेश छत्तीसी
सौ बीज जोउ वावै सुकृत कमाई खोवें, सै ताके फल होवै वचन पतीज रे ।
प्रथम लहै है जाति भटकत द्यौस राति, श्रीतम वियोग जोग खल देख्यां खीजरे ।
दरिद वढै है गेह अपजस को न छेह, क्रूर जिनहरख कहूं तौ करि धीज रे ||३१|| अथ नवकार महिमा कथन सवइया ३१
सुख को करणहार दुख को हरणहार, मुगति कौ दैहार मध्य उर हार जू ।
भय को संजहार रि कौ गंजणहार, मन कौ रंजणहार नित अविकार जू । यौही नीको मंगलीक समरण निरभीक, महामंत्र तहतीक महिमा अपार जू ।
चवद पूरव सार जीव को परम आधार, जिनहरख समर नित प्रति नवकार जू ||३२||
अथ पुन नवकार महिमा कथन सवइया ३१ याकै समरण भयो नाग फीट धरणिंद, इंद पद लौ सब जात संसार जू ।
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संबल कंबल बैल aft निज मन मैल लही सुरगति सैल लह्यौ सव पार जू ।